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ऑनलाइन शिक्षा – एक चुनौती

Rahul Garg

कोविड -19 में विविध शिक्षण संस्थानों द्वारा चलाई जा रही शिक्षा व्यवस्था ने मुझे कक्षा 9 एनसीईआरटी की अंग्रेजी की पुस्तक “बीहाइव” का प्रथम पाठ “द फन दे हैड” याद दिलवा दिया। इस पाठ में सन् 2157 के विद्यालयों का वर्णन है। इसमें टॉमी को आज के समय की एक वास्तविक पुस्तक मिलती है। इस पुस्तक को देखकर टॉमी और उसकी बहन मार्जी को हैरानी होती है क्योंकि उन्होंने ऐसी किताब पहले कभी नहीं देखी थी। वे दोनों तो कंप्यूटर, वर्चुअल क्लासरूम, रोबोटिक्स टीचर और ई पुस्तकों से पढ़ाई करते थे। सन् 2157 में विद्यार्थी जिस प्रकार से शिक्षा अर्जित करते थे, उसका अधिकांश हिस्सा वर्तमान में घटित होता दिख रहा है। वर्तमान समय में भी अधिकतर कक्षाएं वर्चुअल मोड में आयोजित हो रही है। विद्यार्थी के पास पर्याप्त सामग्री उपलब्ध ना हो पाने के कारण वे ई पुस्तकों के माध्यम से ही पढ़ रहे है। इस शिक्षा व्यवस्था ने शिक्षा रूपी गाड़ी को चला तो दिया है पर पहले के मुकाबले यह इतनी कार्यकुशल नहीं रह गई है।

शिक्षा किसी भी देश के विकास का एक आधार तत्व होती है। किसी भी देश में एक शिक्षित नागरिक उत्पादक नागरिक होता है जो देश के उन्नयन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करता है। परन्तु कोविड -19 के कारण यह शिक्षा व्यवस्था पूर्णतया बंद हो गई थी। लंबे समय से बंद शिक्षा व्यवस्था को पुनः शुरू करने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया गया। इसके तहत, विद्यार्थी और शिक्षक कई ऑनलाइन ऐप जैसे ज़ूम, गूगल मीट, माइक्रोसॉफ्ट टीम, वेबेक्स आदि पर आए और वर्चुअल मोड में शिक्षा का आदान प्रदान करना शुरू किया। इसके अतिरिक्त, कई प्रसिद्ध ऐप जैसे अनएकेडमी, यूट्यूब आदि पर भी शिक्षकों द्वारा पढ़ाई संबंधी वीडियो डालकर भी इस व्यवस्था को पुनः चालू किया।

महामारी के इस संकट के समय इस शिक्षा व्यवस्था ने सम्पूर्ण विद्यार्थियों को कितना लाभ पहुंचाया है, इसकी जानकारी तो मुझे अल्प मात्रा में है परन्तु इसने उनके स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव अवश्य डाला है। विद्यार्थियों का दिन का अधिकांश समय लैपटॉप, स्मार्ट फोन, कंप्यूटर जैसे तकनीकों पर ही बीतता है। इससे उनमें प्रायः मानसिक तनाव, आंखों की सूजन, कमजोरी का अहसास, सुनने में बाधा जैसी समस्याएं होना अब सामान्य बात हो गई है। उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन व क्रोध जैसी भावनाओं को प्रबलता मिल रही है।

इसके अतिरिक्त, भारत एक विकासशील देश है। यहां अभी भी प्रत्येक परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं है कि वह अपने बच्चे को आधुनिक तकनीकी सामग्री उपलब्ध करवा सके। वर्तमान में कई विद्यार्थियों ने अपनी पढ़ाई इसलिए छोड़ दी क्योंकि उनके पास पर्याप्त साधन नहीं है।

हाल ही में गोवा के पाल गांव में 16 वर्षीय छात्र द्वारा की गई आत्महत्या की घटना इस स्थिति का सजीव उदाहरण प्रस्तुत करती है। लॉक डाउन के कारण परिवार की आमदनी का स्त्रोत समाप्त हो गया। वह छात्र अपनी पढ़ाई फोन के जरिए करता था। एक दिन उसकी फोन की स्क्रीन टूट गई, इसके बारे में जब उसने अपने माता पिता से कहा तो उसका उनसे झगड़ा हो गया। अंत में फोन की स्क्रीन ठीक ना हो पाने की वजह से उसने आत्महत्या कर ली। इसके अतिरिक्त उनके घर में एक ही फोन था जबकि ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले दो छात्र थे। दो फोन ना हो पाने पर उन दोनों में से कोई एक ही अपनी पढ़ाई कर पाता था जबकि दूसरा बाहर मौज मस्ती करता था।

इसके अलावा, भारत में केवल 8% युवा पीढ़ी के पास ही इंटरनेट सुविधा से जुड़े हुए कंप्यूटर जैसी सुविधाएं उपलब्ध है। यह भी एक संवेदनशील विषय है जोकि ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था के प्रयास को विफल कर रहा है।

इसके अलावा, केवल तकनीक सामग्री का उपलब्ध होना मात्र पर्याप्त नहीं है। अधिकांश विद्यार्थी ग्रामीण पृष्ठभूमि से है। वे अपने घरों से ही शिक्षा अर्जित कर रहे हैं जहां अभी भी इंटरनेट कनेक्शन जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके चलते भी उनकी शिक्षा में विघ्न आ रहे है।

नेशनल सैंपल सर्वे के शिक्षा से जुड़े 75वें चरण के आंकड़े बताते हैं कि देश में केवल 24 प्रतिशत घरों में ही इंटरनेट की सुविधा है। इनमें से 42 प्रतिशत तो केवल शहरी क्षेत्रों में हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो केवल 15 प्रतिशत घरों में इंटरनेट की सुविधा है।

सिकंदपुर के एक अभिभावक जयप्रकाश डागर द्वारा दैनिक भास्कर के संवाददाता को इस संदर्भ में कही गई बात विचारणीय है – “ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी न मोबाइल नेटवर्क सुगम है, न अधिकांश के पास एंड्रायड मोबाइल है। टीवी पर एजुसेट से पढ़ाई हो रही है, लेकिन बच्चों को इससे जोड़े रखने में काफी मुश्किल है सुविधा और बेहतर करने की जरूरत है।”

वर्तमान में शिक्षा जगत में प्रत्येक व्यक्ति को आधुनिक तकनीक की इतनी जानकारी भी नहीं है जितनी होनी चाहिए। कई विद्यार्थियों और शिक्षकों को तो अभी स्मार्ट फोन, कंप्यूटर जैसी तकनीक को चलाना भी नहीं आता है जोकि इस व्यवस्था को संचालित करने में एक नकारात्मक बिंदु है।

महामारी के इस संकट के दौर में, विद्यार्थी प्रायः अपने घरों से ही शिक्षा अर्जित कर रहे है। दो महीनों तक ऑनलाइन क्लास लेने के बाद मुझे ये अहसास हुआ कि घर से प्रायः औपचारिक शिक्षा अर्जित नहीं की जा सकती है। इसके निम्न कारण है:-

  1. घर में ऐसा माहौल नहीं होता जैसा कि किसी विद्यालय, विश्वविद्यालय या अन्य शिक्षण संस्थानों द्वारा हमें उपलब्ध कराया जाता है। वहां पढ़ाने व पढ़ने का एक नियमित ढांचा व आवश्यक सामग्री उपलब्ध होती है। कई विषय जैसे गणित, विज्ञान, आदि को एक कक्षा में ही अच्छे से समझा जा सकता है।

उदाहरण के लिए “द हिन्दू” अख़बार में वूमेन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली की डेप्युटी डायरेक्टर अनीता केशकर ने ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था पर रोष प्रकट करते हुए कहा, “हमारे अधिकांश विषय बहुत ही व्यावहारिक हैं और सौंदर्य संस्कृति, फैशन डिज़ाइन और सिलाई, कार्यालय प्रबंधन, यात्रा और पर्यटन, वेब डिज़ाइन – जैसे विषय ऑनलाइन पढ़ाना मुश्किल है। जब तक विद्यार्थी आपके सामने न हों, तब तक आप एक छात्र को कैसे दिखा सकते हैं कि वह कपड़े का एक टुकड़ा कैसे काटे और दर्जी करे।”

  1. घर में विद्यार्थी कितना भी ध्यान लगा ले पर उसका पढ़ाई में ध्यान एकाग्र नहीं हो पाता है। यदि कोई विद्यार्थी शिक्षण संस्थान में जाकर पढ़ाई करता है तो वहां वह अनिवार्यतः पढ़ाई करता है परन्तु घर में वह पढ़ाई के समय अन्य गतिविधियों में भी संलग्न रहता है।

  2. एक विद्यार्थी जब शिक्षण संस्थान में जाकर शिक्षा अर्जित करता है तो वह अपने समउम्र सहपाठियों के साथ वार्तालाप, संवाद के द्वारा अपने कौशल और ज्ञान में वृद्धि करता है। परन्तु घर में वह एकल होता है। ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था ने यह संवाद समाप्त कर दिया है। यह संवाद केवल सहपाठियों के साथ ही नहीं बल्कि शिक्षकों के साथ भी बोझिल होता दिख रहा है। शिक्षण संस्थानों में शिक्षक व विद्यार्थी आमने सामने वार्तालाप करते है, उनके मध्य कोई अन्य माध्यम नहीं होता था। परन्तु अब आधुनिक तकनीक शिक्षक शिष्य के मध्य माध्यम बनकर आ गई है। विद्यार्थी और शिक्षक का संवाद इस तकनीक की कार्यकुशलता पर निर्भर हो गया है।

संक्षेप में कहा जाए तो इस शिक्षा व्यवस्था ने शिक्षा को उदासीन बना दिया है। हालांकि शिक्षण संस्थानों द्वारा मनोरंजन हेतु विविध ऑनलाइन गतिविधियों का आयोजन करवाया जा रहा है। पर ऑनलाइन गतिविधियां एक सीमा में ही आयोजित की जा सकती है। मेरा मानना है कि विद्यार्थी ऑनलाइन गतिविधियों में अपनी रुचि कम दिखाते है क्योंकि इन गतिविधियों में वैसी उमंग, जोश और उल्लास नहीं है जो प्रत्यक्ष रूप से आयोजित कार्यक्रम में है।

यह हाल तो केवल सामान्य छात्र-छात्राओं का है। जब हम शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम विद्यार्थियों के बारे में विचार करेंगे तो यह मामला और अधिक संवेदनशील, चिंताग्रस्त और हानिकारक मालूम होगा। जब सामान्य विद्यार्थियों को इतनी समस्या आ रही है तो उन अक्षम विद्यार्थियों को तो असीमित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा होगा।

इस शिक्षा व्यवस्था में अनेक दोष है। फिर भी इसके माध्यम से ही विद्यार्थी महामारी के इस संकट के दौर में अपनी पढ़ाई निरंतर जारी रख पाए है। उनका साल बर्बाद नहीं हो पाया है। हालांकि इस व्यवस्था में कुछ बदलाव भविष्य में मुझे समाप्त होते दिख रहे है। जैसे तकनीकी ज्ञान के अभाव की समस्या। यह समस्या शीघ्र ही दूर होती दिख रही है। क्योंकि भारतीय सरकार द्वारा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति में उच्च तकनीक के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता दिखाई है। तकनीकी उपकरण की उपलब्धता की समस्या का समाधान सरकार व निजी प्रयास द्वारा व दोनों के समन्वित प्रयास से किया जा सकता है। फिर भी मुझे उम्मीद है कि शीघ्र ही सभी शिक्षण संस्थानों को खोल दिया जाएगा। भारत अब निरंतर अनलॉक के दौर से गुजर रहा है। भारतीय सरकार द्वारा अब धीरे धीरे प्रत्येक क्षेत्र को खोला जा रहा है। यदि हम सब थोड़ा संयम, बुद्धिमत्ता और विवेक से कोरोना संबंधी सावधानियों का पालन करेंगे तो यह महामारी शीघ्र ही समाप्त होगी। अतः विद्यार्थियों को इस बोझिल रूपी ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था से भी मुक्ति मिलेगी।

राहुल गर्ग

rahulgargji04@gmail.com

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