भारतीय जनसंख्या परिषद के डायरेक्टर निरंजन सगुरती का कहना है कि भारत ने अपने परिवार नियोजन उपायों के साथ बहुत अच्छा इस्तेमाल किया है और अब हम 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता पर हैं, जो वांछनीय है। हमें किसी जबरदस्ती के उपाय की जरूरत नहीं है।
अपनी बहुविविध संस्कृति, भाषा, धर्म, त्योहार ,खान पान, आदि के लिए दुनिया भर में विख्यात भारत एक अन्य वजह से भी दुनिया में शीर्ष स्थान पर है। वह है - भारत की जनसंख्या उसे विश्व में चीन के बाद दूसरे पायदान पर खड़ा करती है। 2011 में हुई 15 वीं जनगणना के दौरान, भारत की जनसंख्या 1,210,854,977 थी, जिसमें पुरुषों की संख्या 623, 724, 248 और महिलाओं की संख्या 586,469, 174 थी| भारत की जनसंख्या निरंतर तीव्र गति से वृद्धि कर रही है और अनुमान किया जा रहा है कि ऐसा ही चलता रहा तो 2100 ईसवी तक आते आते भारत चीन को इस संदर्भ में पीछे छोड़ते हुए विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा।
किसी भी देश की जनसंख्या में वृद्धि अचानक नहीं होती है, उसके पीछे अनेक कारकों की अहम भूमिका रहती है।इसका मुख्य कारण है उस देश की मृत्यु दर में गिरावट और जन्म दर में वृद्धि होना। 2020 में, भारत की मृत्यु दर व जन्म दर क्रमशः 7.3 प्रति 1,000 व्यक्ति और 18.2 प्रति 1,000 व्यक्ति थी| इसके अतिरिक्त अन्य कारणों में अशिक्षा(परिवार नियोजन ना करना), कृषि प्रधान समाज (जितने ज्यादा व्यक्ति होंगे उतने ज्यादा हाथ या श्रम), पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता, धार्मिक आडंबर (जैसे पुत्र का माता पिता की मुक्ति का माध्यम होना), अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं आदि हो सकते है। इसके अतिरिक्त, दूसरे देशों से लोगो का पलायन आदि अन्य गौण कारक भी जनसंख्या वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। अब जहां तक इसके कारणों पर संक्षिप्त रूप से चर्चा हो गई है तो इसके प्रभाव पर भी चर्चा कर लेते है। मेरे हिसाब से, वर्तमान दौर में किसी देश की जनसंख्या का अधिक होना उसको फायदा कम हानि ज्यादा पहुंचाता है। जनसंख्या के असंतुलन से जहां एक तरफ प्रकृति में असंतुलन आता है, जैसे - प्राकृतिक संसाधनों - भूमि,जल,जंगल ,आदि का दोहन, मानवीय क्रियाकलापो में वृद्धि जोकि जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है तो वहीं दूसरी तरफ विकासशील देशों में बेरोजगारी,भूख, गरीबी,निम्न जीवन स्तर जैसी कई अन्य समस्याओं को बढ़ावा भी मिलता है।
जनसंख्या वृद्धि के कारणों और प्रभावों पर संक्षिप्त रूप से चर्चा करने के पश्चात, वर्तमान दौर के सर्वाधिक प्रासंगिक व विचारणीय मुद्दे की और अग्रसर होते है कि क्या भारत में जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण हेतु किसी कानून की आवश्यकता है या नहीं? बहुत लंबे समय से यह विषय एक विवादग्रस्त मुद्दा बना हुआ है। जहां तक इसकी प्रासंगिकता का सवाल है तो इस संदर्भ में दो मुख्य घटनाएं मेरे ध्यान में आ रही है जिसकी और मैं आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। प्रथम यह कि हाल ही में, बीजेपी कार्यकर्ता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में ' टू चाइल्ड लॉ ' लागू करने के लिए एक जनहित याचिका डाली थी जिसमें उन्होंने 'टू चाइल्ड लॉ' का समर्थन करते हुए कहा था कि जनसंख्या विस्फोट हमारी अधिकांश समस्याओं का मूल कारण है जिसमें पेयजल की कमी, जंगल, भूमि, भोजन, कपड़े, घर, गरीबी और बेरोजगारी, भूख और कुपोषण और वायु, जल, मिट्टी और ध्वनि प्रदूषण शामिल हैं। इसके अलावा, भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से संबोधन के दौरान भी इस विषय पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि जनसंख्या विस्फोट भारत की भावी पीढ़ियों को कई स्तरो पर प्रभावित करेगा।
इस प्रकार, यह मुद्दा प्रासंगिक बना हुआ है, अपितु इस संदर्भ में मेरा मानना है कि भारत में ‘टू चाइल्ड लॉ’ जैसे जनसंख्या नियंत्रण कानून जैसे लाने की आवश्यकता नहीं है| इसके अग्रलिखित कारण हो सकते है| एक कारण यह है भारत की जनसंख्या में आश्रित वर्ग (विशेषतः वृद्धों का) का अनुपात निरंतर बढ़ रहा है। यू.एन.एफ.पी.ए की भारतीय एजिंग (aging) रिपोर्ट,2017 के अनुसार, 60 या इससे ऊपर की उम्र वाले व्यक्तियों के अनुपात में 2015 से 8% की वृद्धि हुई है जोकि 2050 में 19% होने ही उम्मीद है| इसके लिए जिम्मेदार कारकों में भारत का स्वास्थ्य तकनीक में प्रोन्नति करना और स्वास्थ्य तकनीक को उत्तम बनाना है। इसके अतिरिक्त, यह अनुमान किया जा रहा है कि इस शताब्दी के अंत तक वृद्धों का हमारी जनसंख्या में अनुपात 37% हो सकता है। भारत एक विकास शील देश है जहां आश्रित वर्गो की अपेक्षा युवा और कामगार वर्ग की आवश्यकता है जिसका अनुपात पहले से ही नकारात्मक चल रहा है। ऊपर से यदि जनसंख्या नियंत्रण कानून ला दिया जाएगा तो कामगार और युवा वर्ग के अनुपात की जनसंख्या में और अधिक गिरावट आने की उम्मीद है, जोकि भारत जैसे देश के लिए ठीक नहीं है। भारत ही क्या, यह तो किसी भी देश के लिए ठीक नहीं है जिसकी जनसंख्या में आश्रित वर्गो की संख्या अनाश्रीत वर्गो की संख्या से ज्यादा हो।
इसके अलावा, भारत की जनसंख्या वृद्धि का कारण शिशुओं का अधिक जन्म नहीं है। इसकी पुष्टि इस बात से होती है की भारत की प्रतिस्थापन दर 2.1 है। प्रतिस्थापन दर उर्वरता का अर्थ उस दर से है जिस पर जनसंख्या एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने आप को बिल्कुल प्रतिस्थापित कर लेती है। 2.1 या उससे कम की दर से प्रत्येक नई पीढ़ी, अपनी पहले की पीढ़ी की तुलना में कम आबादी वाली होती है। इस प्रकार, संक्षिप्त रूप से कहे तो जनसंख्या नियंत्रण कानून देश में उम्र अंतराल को बढ़ाने का प्रभावी कारक होगा। इसके अतिरिक्त, प्रजनन करना या ना करना, यह किसी व्यक्ति का निजी मामला है। अन्य कारण यह है कि भारत के अलग अलग राज्यों में प्रजनन दर अलग अलग है। जनसंख्या सर्वेक्षण के अनुसार, सर्वाधिक प्रजनन दर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यो में है। इसके अलावा, सार्वजनिक स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है जिसपर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को है। इस प्रकार, प्रत्येक राज्य अपने राज्य की स्थिति का निरीक्षण करे और यदि आवश्यक हो तो ही इस कानून को लागू करे अन्यथा अभी ऐसे कानूनों की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती।
हमे ऐसे कानून लाने के बजाए समाज को शिक्षित करना चाहिए। एक अशिक्षित समाज परिवार नियोजन में अक्षम होता है। हम चाहे कुछ भी कह ले पर अभी भी वर्तमान में, अप्रत्यक्ष तौर पर ही पितृसत्तात्मक सोच मनुष्यों पर हावी है। मैं सभी का तो नहीं कह सकता पर अधिकांश परिवारों में अभी भी पुत्री शिशु की अपेक्षा पुत्र शिशु की आकांक्षा के कारण भी भारतीय, अधिक संतान उत्पत्ति करते है। ऐसे कठोर कानून लाने के बजाए सरकार को लचीला रुख अपनाना चाहिए। उन्हें शिक्षित करने, स्त्रियों का महत्व समझने,व संविधान का मूलभूत आदर्श - समानता - जैसे नैतिक विचारो को समाज में प्रसारित करने के कार्यक्रम व योजना बनानी चाहिए। भारत अभी भी कृषि प्रधान समाज है। हालांकि वह तीव्र गति से प्रत्येक क्षेत्र- विज्ञान,स्वास्थ्य,तकनीक,उद्योग,कृषि,आदि में तरक्की कर रहा है।परन्तु मेरा मुख्य ध्येय यहां कृषि तकनीक पर है। प्राचीन काल से ही परिवार में सदस्यों में गुणात्मक सुधार व उसमें वृद्धि करने की अपेक्षा परिवार के सदस्य संख्या पर बल दिया जाता रहा है।यह समझा जाता रहा है कि जितने अधिक सदस्य होंगे उससे इतनी अधिक खेती में मदद मिलेगी तथा समाज में उसका दबदबा भी होगा। ऐसी सोच हालांकि अब समाप्त होती जा रही है, भारत ने कृषि क्षेत्र में उच्च तकनीकों का इस्तेमाल करना प्रारम्भ करना शुरू कर दिया है। इसके अतिरिक्त,यदि जनसंख्या निरोध कानून भारत में लाया जाता है, तो इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है। दम्पत्ति, कानून के दंड के भय से निर्धारित सीमा से ऊपर के सभी शिशुओं को महिला के गर्भ में ही समाप्त करने जैसे कठोर निर्णय ले सकते है। यदि इस कानून का भारत स्वागत करता है तो अबॉर्शन जैसी विधियों को समाज में बढ़ावा मिल सकता है।
जिन देशों (जैसे चीन,जापान,यूनाइटेड किंगडम,आदि) ने चाइल्ड लॉ जैसे इन नियमो को अपने देश में लागू किया, वहाँ जनसंख्या नियंत्रण में तो आई पर कहीं अधिक उपरोक्त दुष्प्रभावों उनको झेलने पड़े। तो इस प्रकार, मेरे हिसाब से हमें अभी इसे कानूनी की आवश्यकता नहीं है। इन कानूनों को लाने के बजाए यदि हम व्यक्ति के नैतिक मूल्यों में वृद्धि, उसकी प्राचीन रूढ़ियों की समाप्ति,उसके सामाजिक व बौद्धिक विकास, लिंग भेद जैसी कुप्रथाओं,आदि की समाप्ति पर बल देंगे तो स्वयं ही जनसंख्या नियंत्रण में आ जाएगी।
राहुल गर्ग
सुजान लेख ! 👏