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नया दशक, नया बिहार ?

Sumit Singh

बिहार: एक ऐसा राज्य जहां उदघाटन से ठीक पहले पुल ढह जाया करते है, वहां उसी बिहार में उम्मीदों के पुल बांध रही है पुष्पम प्रिया। एक ऐसा राज्य जहां की राजनीति जाति-धर्म की दलदल से निकल नहीं पाती वहां उसी बिहार में सिर्फ रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था को चुनावी मुद्दों की मुख्यधारा में ला रही है दरभंगा की पुष्पम प्रिया। एक ऐसा राज्य जहां दलगत राजनीति यहां के नेताओं के रग रग में है, उसी बिहार में अकेले पूरी की पूरी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है पुष्पम प्रिया। एक युवा नेत्री जो खुद को बिहार विधानसभा चुनाव की मुख्यमंत्री पद की दावेदार घोषित कर चुकी है और बिहार के सम्पूर्ण बदलाव कि बात करते हुए पूरे बिहार के स्वरूप को बदलना चाहती है।

पुष्पम प्रिया चौधरी “प्लुरल्स” पार्टी की सुप्रीमो/अध्यक्ष है। प्लुरल्स एक नई राजनीतिक पार्टी है जो इस बार के बिहार चुनावों में अपनी किस्मत आजमाएगी। प्लुरल्स पार्टी वर्तमान राजनीतिक व्यवहार के विरूद्ध खड़ी होकर बिहार की राजनीति को पुन: परिभाषित करने का दावा करती है। “जन गण – सबका शासन” का नारा बुलंद करने वाली पुष्पम प्रिया आम जनमानस से गंदी राजनीति को बर्खास्त करने का आग्रह करती है और ऐसी सरकार चुनने के लिए कहती है जो विविधता में विश्वास करे न कि विभाजन में, जो संस्थाओं का निर्माण करे न कि व्यक्तिगत लाभ में विश्वास रखे, जो त्वरित सुनवाई करे न कि नाकाम व्यवस्था चलाए, जो बिहार को नम्बर एक बनाए न कि देश में सबसे नीचा पायदान दिलाए, जो सुविधाएँ देने वाले पॉलिसी निर्माता हो न कि वो जो टैक्स का पैसा चुराएँ, जो सम्माजनक वेतन वाला रोज़गार दिलाए न कि प्रति व्यक्ति न्यूनतम जीडीपी, जो समावेशी विकास करे, जो बिहार को विश्व का सबसे उपजाऊ प्रदेश बनाए न कि बाढ़ग्रस्त प्रदेश और बीमारू राज्य, जो आपको चुनने का हक़ दे न कि महज़ स्वीकार करने की मजबूरी।

पुष्पम प्रिया चौधरी का लालन-पालन दरभंगा, बिहार में हुआ। वे अपनी उच्च शिक्षा के लिए बिहार से बाहर गईं। पुष्पम ने यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स से डिवेलपमेंट स्टडीज़ में स्नातकोत्तर की डिग्री ली। पुष्पम ने उसके बाद लंदन स्कूल ऑफ ईकोनोमिक्स एंड पोलिटिकल साइंस से पब्लिक एड्मिनिस्ट्रेशन में दूसरी स्नातकोत्तर डिग्री ली। पुष्पम प्रिया चौधरी 2019 में एक बेहतर बिहार बनाने और यहां की अक्षम राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के लक्ष्य के साथ लौटी है।

पुष्पम प्रिया एक अभियान को बहुत जोरों शोरों से चला रही है और वह है #LetsOpenBihar और #30Yearslockdown . वे मानती है कि बिहार में औद्योगिक क्रांति लम्बे समय से लम्बित है। औद्योगिक क्रांति से उनका तात्पर्य है: “प्रोडक्शन, इनोवेशन, इन्वेस्टमेंट”। पुष्पम का मानना है कि इससे रोजगार का सृजन होगा, जिंदगियाँ बदलेंगी और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन-स्तर में सुधार आएगा। उनके अनुसार अब समय आ गया है कि वैश्वीकरण के दौर में तेज़ी से विकसित हो रही दुनिया में बिहार को 30 साल के आर्थिक लॉकडाउन के कारण हुए नुक़सान की भरपाई की जाए. वह पूरे एक दशक का समय चाहती है और कहती है कि 2020-2030 का दशक बिहार के सम्पूर्ण बदलाव का युग होगा। पुष्पम प्रिया कहती है कि बिहार के लोगो के पास परेशानी ये थी कि उनके पास विकल्प नहीं था परंतु हम एक विकल्प बनकर आए हैं। बिहार के लोगो को गठबंधन और बंधन से मुक्ति दिलाने हेतु प्लुरल्स पार्टी का निर्माण किया है।

पुष्पम प्रिया का बिहार की राजनीति में आना और खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताना बहुत बड़ा संकेत इसलिए भी है क्योंकि बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सराहनीय नहीं रही है। जरा सा इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो सब साफ़ हो जाएगा। करीब पांच दशक पहले बिहार में ऐसा विधानसभा चुनाव हुआ था, जिसमें एक भी महिला कैंडिडेट विधायक नहीं बन सकी थी। यह 1972 का विधानसभा चुनाव था, जिनमें 318 सीटें पर 45 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं। इसके बावजूद एक भी महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सकी और बिहार विधानसभा के इतिहास में यह पहली बार था जब महिलाओं का प्रतिनिधित्व सदन में शून्य हो गया था।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में महिला विधायकों की संख्या घट कर 28 हो गई थी। 2010 में जबकि बिहार विधानसभा में 34 महिला विधायक चुनी गई थीं। हालांकि अब भी यह आंकड़े राष्ट्रीय औसत, 7.3 फीसदी, के मुकाबले बेहतर हैं लेकिन महिला विधायकों के संबंध में बिहार दूसरे स्थान से गिर कर पांचवे स्थान पर आ गया है। कुल विधायकों (243) के अनुपात के रूप में, 2010 विधानसभा के 15 फीसदी के मुकाबले 2015 विधानसभा चुनाव में 11.5 फीसदी महिलाएं हैं और यह निश्चित तौर पर पिछले एक दशक में महिला राजनीतिक सशक्तिकरण में हुई प्रगति का उलटाव है।

बिहार के राजनीतिक दलों में अगर शीर्ष नेतृत्व की बात करे तो बिहार में “प्लुरल्स” पार्टी को छोड़कर ऐसी कोई भी पार्टी नहीं है जिसकी अध्यक्ष कोई महिला हो, फिर चाहे वो भाजपा हो या कांग्रेस, राजद हो या जदयू, लोजपा हो या जन अधिकार पार्टी।

बिहार की मुख्यमंत्री पद पर भी पुरुषों का वर्चस्व रहा है। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब सत्ता के शीर्ष पर एक महिला मुख्यमंत्री काबिज हुई। 1997 में आजाद भारत में बिहार राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री राबड़ी देवी बनीं। राबड़ी देवी को राजनीति में आने का मौका तब मिला जब उनके पति लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में जेल जाना पड़ा था। ये बिहार के इतिहास में पहली बार था जब किसी महिला मुख्यमंत्री ने कार्यभार संभाला था। हालांकि उनका कार्यकाल भी काफी विवादों में घिरा रहा। बिहार की मुख्यमंत्री रहते हुए उन पर दफ्तर न जाने और विधानसभा में सवालों का जवाब न देने का आरोप लगता रहा। राबड़ी देवी ने तीन कार्यकाल में मुख्यमंत्री पद संभाला। मुख्यमंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल सिर्फ 2 साल (1997-1999) का रहा। दूसरे (1999 से 2000) और तीसरे कार्यकाल (2000 से 2005) में उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

प्लुरल्स पार्टी की पुष्पम प्रिया चौधरी ने यह ऐलान किया है कि वह बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 50% पर महिला उम्मीवारों को चुनावी मैदान में उतारेंगी। पुष्पम मानती है कि बिहार बेहतर के योग्य है, और बेहतर सम्भव है। उनकी पार्टी प्लुरल्स का एजेंडा भी बिहार के सम्पूर्ण बदलाव की बात करता है। प्लुरल्स का लक्ष्य एक ज़िम्मेदार सरकार के रूप में चुने जाने का है जो सही मायनों में लोगों का प्रतिनिधित्व करे और उनके प्रति उत्तरदायी हो। पुष्पम प्रिया संस्थाओं के निर्माण और बेहतर पॉलिसी के कार्यान्वयन पर सबसे ज्यादा जोर देती है ताकि लोगों को उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति से परे सक्षम जनसेवा मिल सकें। वह कहती है की लोगो को इस दिशा में प्रयासरत होना चाहिए ताकि वह संस्था बनाएँ न कि सत्ता के दलाल।

पुष्पम प्रिया बिहार की मरणासन्न अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित कर एक नये बिहार की रचना करना चाहती है जो उत्पादन, नवाचार और निवेश करे ताकि यह 2025 तक देश के सबसे बेहतर शासित व विकसित राज्यों में शुमार हो सके तथा 2030 तक विश्व के सर्वश्रेष्ठ निवास स्थानों में एक बन सके। उनकी पार्टी प्लुरल्स ज़बरदस्ती थोपे गए आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विषमताओं के विरूद्ध लड़ने के लिए बनी पार्टी है और एक ऐसे बिहार का निर्माण करने की क्षमता रखने वाली पार्टी है जो इस बात में विश्वास रखती है कि हर एक ज़िंदगी निस्सन्देह समान रूप से क़ीमती हो। प्लुरल्स पार्टी यह कार्य साक्ष्य-आधारित पॉलिसी निर्माण के माध्यम से करेगी जो सकारात्मक राजनीति पर आधारित होगी।

देश के सभी विकास मानकों पर बिहार सबसे निचले स्तर पर है। ये स्तर सिर्फ़ संख्यात्मक नहीं हैं बल्कि एक अमानवीय और अस्वीकार्य माहौल को व्यक्त करते हैं जिसमें एक बड़ी जनसंख्या रहने को विवश है। यह दुखद स्थिति सिर्फ़ और सिर्फ़ अक्षम व नाकाबिल सरकारों के कारण है। अब समय है पूर्ण परिवर्तन का। और बिहार इसके लिए पूरी तरह से तैयार है। बिहार चुनाव में इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है। जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चौथे कार्यकाल के लिए भाजपा और एनडीए गठबंधन के साथ चुनाव में उतरेंगे, वहीं विपक्षी राजद कांग्रेस के साथ ही इस बार सजा काट रहे पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव के नेतृत्व में उन्हें चुनौती देगी। वहीं इन दोनों से परे प्लूरल्स पार्टी, पुष्पम प्रिया चौधरी के नेतृत्व में चुनावी मैदान में अपना भविष्य आजमाने वाली है। चुनाव आयोग ने हाल में ही प्रेस वार्ता करके बिहार में तीन चरण में चुनाव कराने का ऐलान कर दिया है। बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को  होना है। बिहार की जनता का फैसला 10 नवंबर को आएगा और तभी साफ़ हो जाएगा कि बिहार की जनता ने किसे चुना है। देश इस वक़्त कोरोनावायरस महामारी से जूझ रहा है और दिलचस्प यह भी है कि इन सबके बीच देश में यह पहला राज्य चुनाव होगा। बाकी जनता जनार्दन जिंदाबाद।

-सुमित सिंह sumitsingh8254@gmail.com

चित्रित छवि पहली बार द स्क्रॉल पर ५ नवम्बर २०१५ को दिखाई दी | 

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