top of page

ये ज़ुबान हमसे सी नहीं जाती

Sumit Singh

“वे डरते हैं किस चीज़ से डरते हैं वे तमाम धन-दौलत गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद ? वे डरते हैं कि एक दिन निहत्थे और ग़रीब लोग उनसे डरना बंद कर देंगे ।”

गोरख पांडेय की ये पंक्तियां जेएनयू के एक छात्र द्वारा गुनगुनाते हुए सत्ता को ललकारते हुए सुनी जाती है। एक छात्र जों सत्ता के गुमान से टकराने कि हिम्मत रखता है। एक छात्र जो आज़ादी के नारों में गरीबी, भुखमरी, मनुवाद, अशिक्षा इत्यादि से आज़ादी के मायने तलाश करता है। एक छात्र जो संविधान को सर्वोपरि मानता है। एक छात्र जिसकी इंकलाब की आवाज़ को हुकूमते अपनी पुलिसिया दमन से ख़ामोश कर देना चाहती है। एक छात्र जिससे देश की राजधानी दिल्ली की पुलिस को इतनी मोहब्बत है कि वो पूरे तंत्र के साथ उस छात्र के पीछे हाथ धो के पड़ी है।

कौन है वह छात्र जिसके समर्थन में अनेकों छात्र संगठन अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे है तथा इस देश के बुद्धिजीवी उसके समर्थन में अपने विचारों का पुलिंदा बांध रहे है?

नाम है उमर खालिद। जी हा वहीं उमर खालिद जिसमें आपको एक आतंकी का अक्स दिखाई देता है। वह इसलिए क्योंकि भारतीय मीडिया ने आपके दिमाग में ऐसा ज़हर घोला हुआ है जिसे अपने भीतर से निकाल पाना जितना आवश्यक है, उतना ही कठिन। लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने का नुक़सान ही है, फ़ायदा नहीं। जरूरत है इस छात्र को सुनने की, इसके विचार समझने की, ना कि न्यूज़ एंकरो के कहने पर किसी को भी आतंकी मान लेते हुए उससे नफ़रत करने की। यहां ये जानने के लिए उमर के पीछे की हकीक़त जानिए, उमर बनने की प्रक्रिया को समझिए।

करीब तीन दशक पहले उमर ख़ालिद का परिवार महाराष्ट्र के अमरावती के तालेगांव से दिल्ली आया था। उमर ख़ालिद अपने परिवार के साथ ज़ाकिर नगर में रहता है। लेकिन उमर को यहां शायद ही कभी देखा जाता हो। कहा जाता है कि ख़ालिद के पिता सैयद कासिम रसूल इलियास दिल्ली में ही उर्दू की मैगज़ीन ‘अफकार-ए-मिल्ली’ चलाते हैं। उमर ख़ालिद जेएनयू में स्कूल ऑफ सोशल साइंस से इतिहास में पीएचडी कर रहा है। जेएनयू से वो पहले हिस्ट्री में एमए और एमफिल कर चुका है। उमर ख़ालिद को जेएनयू के ताप्ती छात्रावास में कमरा नंबर १६८ मिला हुआ है। उमर को छात्रावास की सुविधा देने पर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं। खालिद जिस संगठन डीएसयू से जुड़ा है, उसे सीपीआई माओवादी समर्थित छात्र संगठन माना जाता है।

देश विरोधी नारे लगाने के आरोप के बाद से अचानक गायब हुए उमर ख़ालिद को पकड़ने के लिए दिल्ली पुलिस ने जगह जगह छापेमारी की। ख़बरें उड़ीं कि उमर ख़ालिद का संबंध अलगावादियों या किसी आतंकी संगठन से है। हालांकि अब तक पुलिस ने इस मामले पर चुप्पी साध रखी है। जेएनयू के कैंपस में खुलकर विचार रखने की आज़ादी है और ख़ालिद भी उन्ही में से एक है। यहां सत्ता विरोधी नारे आए दिन लगते रहते हैं लेकिन देश विरोधी नारे नहीं लगते। एक के बाद एक वीडियो के आने के बाद भी अभी तक कोई ठोस सबूत ना मिल पाना एक नाकामी है और इस तरफ इशारा करता है कि उमर को झूठे मामलों में फंसाया गया है लेकिन जो भी हो इससे सच्चाई सामने आना मुश्किल है और जांच एजेंसियों के जांच के बाद ही सब सामने आ पाएगा। ख़ालिद को आतंकी बताना काफी हैरान करने वाली बात है।

‘तुम कितने अफ़ज़ल मारोगे, हर घर से अफ़ज़ल निकलेगा’ ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी…’ ‘कश्मीर की आज़ादी तक जंग रहेगी…’ ‘अफ़ज़ल के अरमानों को मंज़िल तक ले जाएंगे…’ ‘बंदूक के बल पर… आज़ादी…’ ‘ अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं….’जैसे नारे भी उमर द्वारा लगाए गए है। पर ध्यान रहे ये सिर्फ आरोप है। इनकी सत्यता की पुष्टि तो वे मीडिया संस्थान भी नहीं करते जो रोज़ रात को प्राइम टाइम न्यूज़ में ये विडियोज़ चलाया करते थे। कई मीडिया संस्थानो की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने इन वायरल विडियोज़ को फ़र्ज़ी तक करार दे दिया है।

जेएनयू हमेशा से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए जाना जाता रहा है और कहा जाता है कि यहां समाज में छुपा लिए जाने वाले मुद्दों पर सीमा से आगे बढ़कर बहस की जाती रही है। चाहे वो समलैंगिकता की स्वतंत्रता पर बहस हो या महिलाओं को स्वछंद रहने और काम करने की आज़ादी का मुद्दा, यहां हर मुद्दे पर गंभीर बहस का आयोजन होता है। इसी वैचारिक खुलेपन को खत्म करने के लिए अतिवादियों की आड़ लेकर सरकार यहाँ एजेंडा भी चलाना चाहती है।

उमर ख़ालिद को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ी हुई है। कारण यह की न्यायालय ने उमर को 10 दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया है। पुलिस ने कोर्ट में रिमांड की मांग करते हुए दलील दी थी कि उसे पूर्व छात्र नेता से कई तथ्यों के बारे में पूछताछ करनी है। पुलिस ने ख़ालिद की गिरफ्तारी गैर-कानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत की है। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि ख़ालिद से दंगों से जुड़े ११ लाख पेज डेटा के साथ सवाल-जवाब किए जाने हैं। सुनवाई के दौरान रिमांड का विरोध करते हुए उमर ख़ालिद के वकील ने कहा कि एंटी-सीएए प्रदर्शन करना कोई अपराध नहीं है।

ग़ौरतलब है कि लंबी पूछताछ के बाद दिल्ली दंगों के आरोपी उमर ख़ालिद को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पुलिस ने दंगे से जुड़े एक अन्य मामले में उमर के खिलाफ गैर कानूनी गतिविधि (निषेध) कानून (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया था। दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने भी दंगे के पीछे कथित साज़िश के मामले में उमर से पूछताछ की थी पुलिस ने उसका मोबाइल फोन भी ज़ब्त कर लिया था। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोधी और समर्थकों के बीच हिंसा के बाद २४ फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे, जिसमें कम से कम ५३ लोगों की मौत हुई थी। जबकि २०० के करीब घायल हुए थे। इस मामले में हाल ही में कई बड़े नेताओं के खिलाफ दिल्ली पुलिस में चार्जशीट दाखिल की है।

उमर ख़ालिद की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली की सियासत फिर गरमा गई है। खासतौर पर बीजेपी नेता कपिल मिश्रा लोगों की निगाहों में हैं। कपिल मिश्रा ने ट्वीट कर कहा, ‘दिल्ली में उमर खालिद, ताहिर हुसैन, खालिद सैफी, सफूरा जरगर, अपूर्वानंद जैसे लोगों ने योजना बनाकर, तैयारी के साथ कत्लेआम किया; ये २६/११ जैसा आतंकी हमला था, इन आतंकियों, हत्यारों को फाँसी होनी चाहिए। दिल्ली पुलिस को बधाई।’

वाकई दिल्ली पुलिस बधाई की पात्र तो है। भड़काऊ भाषण देने वाले कपिल मिश्रा का कही नाम नही, जेएनयू छात्रों पर हमला करने वाली कोमल शर्मा का नाम नही, जामिया में फायरिंग करने वाले गोपाल और शाहीनबाग में फ़ायरिंग करने वाले कपिल का नाम नही, लाइव वीडियो कर रही नफ़रती रागिनी तिवारी का नाम नही। उमर ख़ालिद ने कहा था, “अगर वह गोली चलाएँगे तो हम संविधान को हाथ में उठाएंगे’। यह है उमर ख़ालिद, जिसे दिल्ली दंगे करवाने के लिए गिरफ्तार किया गया है। कपिल मिश्रा जैसे लोग जिन्होंने साफ-साफ दंगा भड़काया उन्हे नहीं। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के मुद्दे पर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा और भाजपा नेताओं के भड़काऊ बयानों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस एस मुरलीधर ने पुलिस और सरकार को फटकार लगाई थी। जस्टिस मुरलीधर उस बेंच में शामिल थे, जिसने भाजपा नेता अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर में देरी के लिए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी। इसके बावजूद उनसे तो पूछताछ तक नहीं हुई, कार्रवाई और गिरफ्तारी तो बहुत दूर की बात है। इसके विपरीत जस्टिस एस मुरलीधर का ही आधी रात को ट्रांसफर कर दिया गया।

संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध नागरिक के तौर पर उमर ख़ालिद की गिरफ़्तारी की निंदा की जानी चाहिए। नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए उमर ख़ालिद को दोषपूर्ण जाँच के तहत निशाना बनाया जा रहा है। अब तो यह कहने में भी कोई संदेह नहीं है कि यह जाँच राष्ट्रीय राजधानी में फ़रवरी २०२० में हुई हिंसा के बारे में नहीं है, बल्कि असंवैधानिक सीएए के ख़िलाफ़ देश भर में पूरी तरह से शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक विरोध के बारे में है। उमर खालिद उन सैकड़ों आवाज़ों में से एक था जो देश भर में संविधान के पक्ष में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हमेशा शांतिपूर्ण, अहिंसक और लोकतांत्रिक तरीक़ों की ज़रूरत पर ज़ोर देते थे। उमर खालिद उनमें से एक है जो संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में युवा भारतीयों की एक मज़बूत और शक्तिशाली आवाज़ के रूप में उभरे हैं।

दिल्ली पुलिस द्वारा दिल्ली हिंसा के लिए साज़िश के कई संगीन मामलों में उमर को फँसाने की बार-बार की गई कोशिशें उनकी असहमति की आवाज़ को दबाने का एक बड़ा प्रयास है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि दिल्ली दंगो में गिरफ्तार किए गए २० में से १९ लोग, ३१ वर्ष से कम उम्र के हैं। जिनमें से १८ को सख़्त यूएपीए के तहत आरोपी बनाया गया है और दिल्ली हिंसा के लिए साज़िश-कर्ता के आरोप में कैद किया गया है, जबकि वास्तव में जिन लोगों ने हिंसा को उकसाया और जो लोग उसमें शामिल हुए उन्हें छुआ तक नहीं गया है।

यहां ये भी ध्यान रहे की मुख्यधारा की मीडिया ग़लत सूचनाएँ प्रसारित कर रहा है और जानबूझ कर ऐसी चुनिंदा सूचनाएँ लीक की जा रही हैं जिससे मीडिया ट्रायल हो जाए और न्याय को प्रभावित किया जा सके। यह तुरंत बंद किया जाना चाहिए। यदि हम क़ानून को अपना काम करने देंगे तो विश्वास जागृत रहेगा कि न्याय होगा। विभिन्न एफआईआर के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि खालिद के खिलाफ अब तक का मामला आरोपों पर ही निर्भर है कि विरोध प्रदर्शनों में उनकी भागीदारी दंगे भड़काने की साजिश का एक हिस्सा थी, लेकिन शांतिपूर्ण प्रदर्शनों से भेदभावपूर्ण कानून का विरोध हिंसा की योजना बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए, इस तर्क को सही ठहराने के लिए बहुत कम सबूत बचते है।

उमर की गिरफ्तारी पर बॉलीवुड के कई सितारों ने नाराज़गी जताते हुए उन्हें छोड़ने की मांग की है। स्वरा भास्कर, गौहर खान तथा अभिनेता जीशान अयूब ने उमर ख़ालिद का समर्थन किया। ‘मशहूर साउथ और बॉलीवुड अभिनेता प्रकाश राज ने कहा है कि उमर की गिरफ्तारी को लेकर आवाज़ उठाई जानी चाहिए। उनके साथ ही इतिहासकार रामचंद्र गुहा, लेखक अरुंधती रॉाय, फ़िल्मकार सईद मिर्ज़ा सहित लेखन, कला, शिक्षा और राजनीति से जुड़ी ३६ हस्तियों ने जेनएयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद की गिरफ़्तारी का विरोध किया है। उमर खालिद की गिरफ्तारी की भर्त्सना पूरे सभ्य समाज ने की है और की जाती रहनी चाहिए। यही समय की मांग है।

-सुमित सिंह sumitsingh8254@gmail.com

चित्रित छवि पहली बार उमर खालिद के ट्विटर अकाउंट पर दिखाई दी | 

Comments


Drop us a line, let us know what you think

Thanks for submitting!

© 2025 | Caucus, Hindu College, University of Delhi, Delhi, India.

bottom of page